वेद पुराण और उपनिषद का एक संछिप्त विवरण तथा परिचर्चा
वेद पुराण और उपनिषद के बारे में एक संक्षिप्त परिचर्चा
वेद पुराण और उपनिषद पुरातन भारत के सनातनी पवित्र ग्रन्थ हैं, जिनकी चर्चा और परिचर्चा हर काल और खंड में बराबर की जाती रही है । आइये इनके बारे में हम भी अपना ज्ञान वर्धन करें । निम्न पंक्तियों में वैदिक साहित्य का संक्षिप्त विवरण दिया जा रहा है, आइये इन्हें जाने समझे ।
– वेद पुराण और उपनिषद में से वेदों ( Vedas ) को संहिता भी कहा जाता है।
– श्रुति साहित्य में वेदों का प्रथम स्थान है। वेद शब्द ‘विद’ घातु से बना है , जिसका अर्थ है ‘जानना’ ।
– वेदों से आर्यों के जीवन तथा दर्शन का पता चलता है ।
– वेदों की संख्या चार है। ये हैं- ऋग्वेद, यजुर्वेद, समावेद और अर्थवेद ।
– वेदों के संकलन का श्रेय महर्षि कृष्ण द्वैपायन वेद-व्यास को है ।
ऋग्वेद :
– ऋग्वेद में 10 मण्डलों में विभाजित है। इसमें देवताओं की स्तुति में 1028 श्लोक हैं। जिसमें 11 बालखिल्य श्लोक हैं ।
– ऋग्वेद में 10462 मंत्रों का संकलन है।
– प्रसिद्ध गायत्री मंत्र ऋग्वेद के चौथे मंडल से लिया गया है।
– ऋग्वेद का पहला ताथा 10वां मंडल क्षेपक माना जाता है ।
– नौवें मंडल में सोम की चर्चा है।
– आठवें मंडल में हस्तलिखित ऋचाओं को खिल्य कहा जाता है।
– ऋग्वेद में पुरुष देवताओं की प्रधानता है । 33 देवताओं का उल्लेख है।
– ऋग्वेद का पाठ करने वाल ब्राह्मण को होतृ कहा जाता था ।
– देवताओं में सबसे महत्वपूर्ण इंद्र थे ।
– ऋग्वेद में दसराज्ञ युद्ध की चर्चा है।
– उपनिषदों की कुल संख्या 108 है।
– वेदांग की संख्या 6 है।
– महापुराणों की संख्या 18 है।
– आर्यों का प्रसिद्ध कबीला भरत था ।
– जंगल की देवी के रूप में अरण्यानी का उल्लेख ऋग्वेद में हुआ है।
– बृहस्पति और उसकी पत्नी जुही की चर्चा भी ऋग्वेद में मिलती है।
– सरस्वती ऋग्वेद में एक पवित्र नदी के रूप में उल्लिखित है। इसके प्रवाह-क्षेत्र को देवकृत योनि कहा गया है।
– ऋग्वेद में धर्म शब्द का प्रयोग विधि(नियम) के रूप में किया गया है।
– ऋग्वेद की पांच शाखाएं हैं- वाष्कल, शाकल, आश्वलायन, शंखायन और माण्डुक्य
– अग्नि को पथिकृत अर्थात् पथ का निर्माता कहा जाता था ।
यजुर्वेद :
– यजुर्वेद में अनुष्ठानों तथा कर्मकांडों में प्रयुक्त होने वाले श्लोकों तथा मंत्रों का संग्रह है।
– इसका गायन करने वाले पुरोहित अध्वर्यु कहलाते थे ।
– यजुर्वेद गद्य तथा पद्य दोनों में रचित है। इसके दो पाठान्तर हैं- 1.कृष्ण यजुर्वेद 2. शुक्ल यजुर्वेद
– कृष्ण यजुर्वेद गद्य तथा शुक्ल यजुर्वेद पद्य में रचित है।
– यजुर्वेद में राजसूय, वाजपेय तथा अश्वमेघ यज्ञ की चर्चा है।
– यजुर्वेद में 40 मंडल तता 2000 ऋचाएं(मंत्र) है।
सामवेद :
– सामवेद में अधिकांश श्लोक तथा मंत्र ऋग्वेद से लिए गए हैं।
– सामवेद का संबंद संगीत से है।
– इस वेद से संबंधित श्लोक और मंत्रों का गायन करने वाले पुरोहित उद्गातृ कहलाते थे ।
– इसमें कुल 1549 श्लोक हैं। जिसमें 75 को छोड़कर सभी ऋग्वेद से लिए गए हैं।
– सामवेद में मंत्रों की संख्या 1810 है।
अथर्ववेद :
– अथर्ववेद की ‘रचना’ अर्थवा झषि ने की थी ।
– अथर्ववेद के अधिकांश मंत्रों का संबंध तंत्र-मंत्र या जादू-टोने से है।
– रोग निवारण की औषधियों की चर्चा भी इसमें मिलती है।
– अथर्ववेद के मंत्रों को भारतीय विज्ञान का आधार भी माना जाता है।
– अथर्ववेद में सभा तथा समिति को प्रजापति की दो पुत्रियां कहा गया है।
– सर्वोच्च शासक को अथर्ववेद में एकराट् कहा गया है। सम्राट शब्द का भी उल्लेख मिलता है।
उपनिषद :
– सूर्य का वर्णन एक ब्राह्मण विद्यार्थी के रूप में किया गया है।
– उपवेद, वेदों के परिशिष्ट हैं जिनके जरिए वेद की तकनीकी बातों की स्पष्टता मिलती है।
– वेद पुराण और उपनिषद में से वेदों की क्लिष्टता को कम करने के लिए वेदांगों की रचना की गई ।
– शिक्षा की सबसे प्रामाणिक रचना प्रातिशाख्य सूत्र है ।
– व्याकरण की सबसे पहल तथा व्यापक रचना पाणिनी की अष्टाध्यायी है।
– ऋषियों द्वारा जंगलों में रचित ग्रंथों को आरण्यक कहा जाता है।
– वेद पुराण और उपनिषद में से वेदों ( Vedas ) की दार्शनिक व्याख्या के लिए उपनिषदों की रचना की गई ।
– उपनिषदों ( Upanishads ) को वेदांत भी कहा जाता है।
– वेद पुराण और उपनिषद में से उपनिषद का शाब्दिक अर्थ है एकान्त में प्राप्त ज्ञान ।
– यम तथा नचिकेता के बीच प्रसिद्ध संवाद की कथा कठोपनिषद् में वर्णित है।
– श्वेतकेतु एवं उसके पिता का संवाद छान्दोग्योपनिषद में वर्णित है।
– भारत का सूत्र वाक्य सत्यमेव जयते मुण्डकोपनिषद् से लिया गया है।
उद्धरण : स्मृति साहित्य
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