सनातन धर्म की उत्पत्ति और प्राचीन भारत में इसका प्रादुर्भाव

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सनातन धर्म की उत्पत्ति से सम्बंधित कोई भी आंकड़े, लेख उपलब्ध नहीं हैं । हमेशा से ही सनातन धर्म को एक शाश्वत धर्म के रूप में माना, जाना गया है ।

सनातन धर्म का मतलब होता है शाश्वत यानि कि जो हमेशा विद्वमान रहने वाला हो । यानि कि जो अजन्मा हो या जो कभी ख़त्म भी ना होने वाला हो । जिसका ना कोई आदि हो, ना ही अंत हो ।

सनातन धर्म को शाश्वत धर्म के भी नाम से जाना जाता है । यानि कि वो धर्म जो अनादि काल से इस पृथ्वी पर विद्वमान है, और जो अनंत काल तक इस पृथ्वी पर विद्वमान रहने वाला हो । सनातन धर्म की उत्पत्ति से सम्बंधित कोई निश्चित तिथि का निर्णय करना अतिश्योक्ति होगी ।

Religion Sanatan Dharma

अधर्ववेद 10/8/23 के अनुशार :-
सनातनमेनमहुरुताद्या स्यात पुनण्रव्
अर्थात जो हमेशा नया नया सा लगे, जो कभी पुराना ना पड़े , जो हमेशा विद्वमान रहने वाला हो ।

सनातन धर्म की उत्पत्ति कब हुई

सनातन धर्म की उत्पत्ति कब हुई बता पाना अत्यंत कठिन है । भारत में  सनातन धर्म को ही कालांतर में हिन्दू धर्म के नाम से जाना जाने लगा था । हिन्दू धर्म शाब्दिक रूप से बहुत पुराना नहीं है । इसे इसके वर्तमान स्वरुप में करीब १००० वर्ष पहले अस्तित्व में आना माना जाता है ।

हिन्दू शब्द की उत्पति सिन्धु से होना माना गया है । ईरानियों ने सिंधु नदी के पूर्व में रहने वालों को हिंदू नाम से पुकारा करते थे । इस तरह हिंदुस्तान में भी इस समुदाय विशेष को लोग हिन्दू नाम से धीरे धीरे पुकारना शुरू कर दिया ।

हिन्दू लोग सनातन धर्म को मानने वाले थे, धीरे धीरे हिन्दुओं के द्वारा माने जाने वाले धर्म को हिन्दू धर्म के नाम से जाना जाने लगा । सनातन धर्म की उत्पत्ति या यूँ कहे की हिन्दू धर्म की उत्पति कब हुई, इस मामले में कुछ ठीक ठीक बता पाना कठिन है ।

एक अन्य मान्यता के अनुशार कुछ इतिहासकार सनातन धर्म की उत्पत्ति के संबंद्ध में यह मानते हैं कि चीनी यात्री हुएनसांग के समय हिन्दू शब्द का प्रयोग शुरू हुवा । चीनी लोग हिन्दुओं को इंदु नाम से पुकारते थे, इंदु यानि चन्द्रमा । भारतीय ज्योतिषीय शास्त्र का आधार चंद्रमास से ही माना गया है ।

Karma in Sanatan Dharma

 

सनातन धर्म की उत्पत्ति से अंक ६ और १० का हमेशा से ही विशेष महत्व रहा है ।

अंक 6:

छ: मुक्ति : 1) सार्ष्टि (ऐश्‍वर्य), (2) सालोक्य (लोक की प्राप्ती), (3) सारूप (ब्रह्म स्वरूप), (4) सामीप्य (ब्रह्म के पास), (5) साम्य (ब्रह्म जैसी समानता), (6) लीनता या सामुज्य (ब्रह्म में लीन हो जाना)। ब्रह्मलीन हो जाना ही पूर्ण मोक्ष है।
छ: शिक्षा : वेदांग, सांख्य, योग, निरुक्त, व्याकरण और छंद।
छ: ऋतु : बसंत, ग्रीष्म, शरद, हेमंत और शिशिर।

अंक 7:

सप्तऋषि : कष्यप, भारद्वाज, गौतम, अगस्त्य, वशिष्ट।
सात छंद : गायत्री, वृहत्ती, उष्ठिक, जगती, त्रिष्टुप, अनुष्टुप और पंक्ति।
सात योग : ज्ञान, कर्म, भक्ति, ध्यान, राज, हठ, सहज।
सात भूत : भूत, प्रेत, पिशाच, कूष्मांडा, ब्रह्मराक्षस, वेताल और क्षेत्रपाल।
सात वायु : प्रवह, आवह, उद्वह, संवह, विवह, परिवह, परावह।
सात द्वीप : जम्बूद्वीप, प्लक्ष द्वीप, शाल्मली द्वीप, कुश द्वीप, क्रौंच द्वीप, शाक द्वीप एवं पुष्कर द्वीप।
सात पाताल : अतल, वितल, सुतल, तलातल, महातल, पाताल तथा रसातल।
सात लोक : भूर्लोक, भूवर्लोक, स्वर्लोक, महर्लोक, जनलोक, तपोलोक, सत्यलोक। सत्यलोक को ही ब्रह्मलोक कहते है।
सात समुद्र : क्षीरसागर, दुधीसागर, घृत सागर, पयान, मधु, मदिरा, लहू।
सात पर्वत : सुमेरु, कैलाश, मलय, हिमालय, उदयाचल, अस्ताचल, सपेल? माना जाता है कि गंधमादन भी है।
सप्त पुरी : अयोध्या, मथुरा, माया (हरिद्वार), काशी, कांची, अवंतिका (उज्जयिनी) और द्वारका।

अंक 8:

अष्‍ट विनायक : वक्रतुंड, एकदंत, मनोहर, गजानन, लम्बोदर, विकट, विध्नराज, धूम्रवर्ण।
आठ भैरव : रुद्र, संहार, काल, असिति, क्रौध, भीषण, महा, खट्वांग।
आठ योगांग : यम, नियम, आसन, प्राणायम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधी।
आठ नदी : गंगा, यमुना, सरस्वती, गोदावरी, नर्मदा, सिंधु, कावेरी, ब्रह्मपुत्र
आठ वसु : अहश, ध्रुव, सोम, धरा, अनिल, अनल, प्रत्यूष और प्रभाष। (यह रहने के आठ स्थान है तथा अग्नि के आठ प्रकार भी। यह अदिति के आठ पुत्रों के नाम भी है)
आठ धातु : सोना, चांदी, लोहा, तांबा, शीशा, कांसा, रांगा, पीतल।
आठ प्रहर : दिन के चार और रात के चार मिलाकर आठ प्रहर होते हैं। यानि एक पहर तीन घंटे का होता है। जैसे प्रात:काल, मध्यकाल, संध्याकाल, ब्रह्मकाल आदि।

अंक 9:

नवधा भक्ति : श्रवण, कीर्तन, स्मरण, पादसेवन, अर्चना, वंदना, मित्र, दाम्य, आत्मनिवेदन।
नौ विधि : पक्ष, महापक्ष, शंख, मकर, कश्यप, कुकंन, मुकन्द, नील, बार्च।
नवदुर्गा : शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्माण्डा, स्कंद, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिरात्रि। ऐसा भी कह सकते हैं- काली, कात्यायानी, ईशानी, चामुंडा, मर्दिनी, भद्रकाली, भद्रा, त्वरिता तथा वैष्णवी।

अंक 10:

दस दिशा : (दस दिग्पाल), पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, वायव, नैऋत्य, आग्नेय और ईशान।
दस अवतारी पुरुष : मत्स्य, कच्छप, वराह, नृसिंह, वामन, परशु, राम, कृष्ण, बुद्ध और कल्की।
ब्रह्मा के दस मानस पुत्र : (मन से उत्पन्न) मरिचि, अत्रि, अंगिरा, पुलह, क्रतु, पुलस्य, प्रचेता, भृगु, नारद एवं महातपस्वी वशिष्ट।
साधुओं के दस संप्रदाय:- 1.गिरि, 2.पर्वत, 3.सागर, 4.पुरी, 5.भारती, 6.सरस्वती, 7.वन, 8.अरण्य, 9.तीर्थ और 10.आश्रम।
दस महाविद्या : काली, तारादेवी, ललिता-त्रिपुरसुन्दरी, भुवनेश्वरी, भैरवी, छिन्नमस्ता, धूमावती, बगलामुखी, मातंकि और कमला।

 

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