कलाई पर मौली क्यों बांधते हैं?
Religious Importance of Sacred Thread around Wrist of Hindus
कलाई पर बधे मौली या कलावा का हिन्दुओं के लिए आखिर क्या है धार्मिक महत्व ???
पूजा की सजी थाली हो, और उसमें हो रोली-मोली, धुप दीप क्व वास, अचानक ही यह उपक्रम, वातावरण में एक अजीब सी पवित्रता का भाव भर देता है । किसी भी शुभ धार्मिक अनुष्ठान में संकल्प या फिर अनुष्ठान की परिपूर्ति होने पर पंडित, उपोरोहित या फिर आचार्य द्वारा कलाइयों पर मौली ( Sacred Thread ) बाधने का विधान है । मोली का बाधा जाना हमें उस संकल्प को याद करते रहना तथा उसकी पूर्ति के लिए प्रयास करना सिखाता है । इसके और भी कई बैज्ञानिक, धार्मिक और सांस्कृतिक कारण हैं, जिनका विस्तार में वर्णन हम नीचे करेंगे ।
मौली बांधना वैदिक परंपरा का अटूट अंग है। यज्ञ के मध्य मौली बंधन की परंपरा तो प्राचीन काल से है, लेकिन इसको संकल्प सूत्र के साथ ही, रक्षा सूत्र ( Sacred Thread ) के रूप में तब से बांधा जाने लगा, जब से असुरों के दानवीर राजा बलि की अमरता हेतु, भगवान वामन ने उनकी कलाई पर रक्षा सूत्र बांधा था।
मौली ( Sacred Thread ) बांधने का मंत्र:-
पहला मन्त्र
येन बद्धो बलीराजा दानवेन्द्रो महाबल: ।
तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे माचल माचल ॥
दूसरा मन्त्र
ऊँ व्रतेन दीक्षामाप्रोति, दीक्षयाडडप्रोति दक्षिणाम्।
दक्षीणा श्रद्धामाप्रोति, श्रद्धया सम्यमाप्यते।।
कैसी होती है मौली ?
मौली ( Sacred Thread ) कच्चे धागे (सूत) से निर्मित होती है, जिसमें मूलत: ३ वर्ण के धागे होते हैं, लाल, पीला व हरा, परन्तु यदा कदा यह ५ धागों की भी निर्मित होती है, जिसमें नीला एवं श्वेत वर्ण भी होता है। ३ व ५ का अर्थ, कभी त्रिदेव के नाम की, तो कभी पंचदेव।
कहां-कहां बांधते हैं मौली ?
मौली ( Sacred Thread ) को हाथ की कलाई, गले एवं कमर में बांधा जाता है। इसके अतिरिक्त, किसी मन्नत हेतु देवी देवता के स्थान पर भी बांधा जाता है तथा जब मन्नत पूर्ण हो जाती है, तो मौली का बंधन मुक्त कर दिया जाता है। इसे घर में आई नवीन वस्तु पर भी बांधा जाता है एवं पशुओं को भी बांधा जाता है।
मौली बांधने के नियम ?
शास्त्रों के अनुसार पुरुषों एवं अविवाहित कन्याओं को अपने दाएं हाथ में कलावा ( Sacred Thread ) बांधना चाहिए। विवाहित स्त्रियों हेतु बाएं हाथ में कलावा बांधने का नियम है। कलावा बंधवाते समय जिस हाथ में कलावा बंधवा रहे हों, उसकी मुट्ठी बंधी होनी चाहिए व दूसरा हाथ सिर पर होना चाहिए। मौली कहीं पर भी बांधें, एक बात का सदैव ध्यान रहे, कि इस सूत्र को केवल 3 बार ही लपेटना चाहिए व इसके बांधने में वैदिक विधि का प्रयोग करना चाहिए।
कब बांधी जाती है मौली ?
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क्यों बांधते हैं मौली ?
कैसे मौली ( Sacred Thread ) हमारी रक्षा करती है ?
मौली को कलाई में बांधने पर कलावा अथवा उप मणिबंध कहते हैं। हाथ के मूल में ३ रेखाएं होती हैं, जिनको मणिबंध कहते हैं। भाग्य व जीवनरेखा का उद्गम स्थल भी मणिबंध ही है। इन तीनों रेखाओं में दैहिक, दैविक व भौतिक जैसे त्रिविध तापों को देने व मुक्त करने की शक्ति रहती है। इन मणिबंधों के नाम शिव, विष्णु व ब्रह्मा हैं। इसी प्रकार शक्ति, लक्ष्मी व सरस्वती का भी यहां साक्षात वास रहता है। जब कलावा का मंत्र रक्षा हेतु पढ़कर कलाई में बांधते हैं, तो यह तीन धागों का सूत्र त्रिदेवों व त्रिशक्तियों को समर्पित हो जाता है, जिससे रक्षा-सूत्र धारण करने वाले प्राणी की समस्त प्रकार से रक्षा होती है। इस रक्षा सूत्र को संकल्पपूर्वक बांधने से व्यक्ति पर मारण, मोहन, विद्वेषण, उच्चाटन, भूत-प्रेत व जादू-टोने का असर नहीं होता। मौली ( Sacred Thread ) विशेषकर ग्रहों के बुरे प्रभाव से हमारी रक्षा करता है ।
आध्यात्मिक पक्ष
चिकित्सीय पक्ष
हाथ में बांधे जाने का लाभ
कमर पर मौली बाधने के लाभ
मनोवैज्ञानिक लाभ
आशा है, उपर्युक्त पंक्तिओं में मौली या कलावा के धार्मिक और बैज्ञानिक महत्व के बारे में हमारे पाठक कुछ ना कुछ ज्ञान अवश्य प्राप्त किये होगे ।
सबका कल्याण हो, जय भारत, जय पुन्य भूमि ।।