Gravitational Force of Earth was Discovered by the Ancient Indian Scientist Bhaskaracharya much before Newton Invented it
Yes, it is a truth that principle of gravitational force was discovered in India by Bhaskaracharya much before Newton actually did so.
क्या पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण की खोज सबसे पहले न्यूटन ने सचमुच की थी ? जी नहीं ! सच ये है कि गुरूत्वकर्षण शक्ति की खोज न्यूटन ने नहीं बल्कि उससे पहले श्री भास्कराचार्य जी ने 500-670 वर्ष पूर्व ही कर दी थी …..
Let us have a glimpse of the conversation which is mentioned in our epics, between the famous mathematician Bhaskaracharya and his daughter Lilavati. Lilavati questioned her father, “Father, this mother earth wherein we all reside, herself reside on which body?”
पिताजी, यह पृथ्वी, जिस पर हम निवास करते हैं, किस पर टिकी हुई है?
लीलावती ने शताब्दियों पूर्व यह प्रश्न अपने पिता भास्कराचार्य से पूछा था।
इसके उत्तर में भास्कराचार्य ने कहा, कि बाले लीलावती, कुछ लोग जो यह कहते हैं कि यह पृथ्वी शेषनाग, कछुआ या हाथी या अन्य किसी वस्तु पर आधारित है तो वे गलत कहते हैं। यदि यह मान भी लिया जाए कि यह किसी वस्तु पर टिकी हुई है तो भी प्रश्न बना रहता है कि आखिर वह वस्तु किस पर टिकी हुई है और इस प्रकार कारण का कारण और फिर उसका कारण… अगर यह क्रम चलता रहे तो न्याय शास्त्र में इसे अनवस्था दोष कहते हैं।
Bhaskaracharya answered the perception of earth residing on Sheshnag, Tortoise or the Elephant is a mythological part. Even you accept these stories, the question will remain where does then such bodies reside. Therefore such stories are called Error of Non-Existence.
लीलावती ने फिर पूछा कि फिर भी यह प्रश्न बना रहता है ना पिताजी कि आखिर पृथ्वी किस चीज पर टिकी है?
तब भास्कराचार्यजी ने कहा, क्यों हम यह नहीं मान सकते कि पृथ्वी किसी भी वस्तु पर टिकी ही नहीं है। यदि हम यह कहें कि पृथ्वी अपने ही बल से टिकी है और इसे धारणात्मिका शक्ति कह दें तो क्या दोष है ?
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Gravitational forces by Bhaskaracharya
When Lilawati again asked Bhaskaracharya, he replied that why don’t we accept that Earth does not reside on anybody or anything but it exists on its own self by the help of various gravitational forces placed on it.
इस पर लीलावती ने पूछा यह कैसे संभव है।
तब भास्कराचार्य सिद्धान्त की बात कहते हैं कि वस्तुओं की शक्ति बड़ी विचित्र है।
मरुच्लो भूरचला स्वभावतो यतो विचित्रावतवस्तु शक्त्य:।। सिद्धांत शिरोमणी गोलाध्याय-भुवनकोश आगे कहते हैं- आकृष्टिशक्तिश्च मही तया यत् खस्थं गुरुस्वाभिमुखं स्वशक्तत्या। आकृष्यते तत्पततीव भाति समेसमन्तात् क्व पतत्वियंखे।। सिद्धांत शिरोमणी गोलाध्याय-भुवनकोश- ।।
Bhaskarachaya then deliberated the above Shloka and annotated the principle of Gravitational Force on Earth.
अर्थात् पृथ्वी में आकर्षण शक्ति है। पृथ्वी अपनी आकर्षण शक्ति से भारी पदार्थों को अपनी ओर खींचती है और आकर्षण के कारण वह जमीन पर गिरते हैं। पर जब आकाश में समान ताकत चारों ओर से लगे, तो कोई कैसे गिरे? अर्थात् आकाश में ग्रह निरावलम्ब रहते हैं क्योंकि विविध ग्रहों की गुरुत्व शक्तियां संतुलन बनाए रखती हैं।
उपरोक्त श्लोकोँ को श्री भास्कराचार्य जी ने अपनी आत्मजा के नाम पर स्वरचित ग्रंन्थ “लीलावती” मेँ संकलित किया था और वे स्वयं इस महान ग्रन्थ को वैदिक साहित्य से सम्बध्द मानते है।
कितने दुःख की बात है कि आजकल हम कहते हैं कि न्यूटन ने ही सर्वप्रथम गुरुत्वाकर्षण की खोज की थी, परन्तु सच्चाई यह है कि उसके 550-670 वर्ष पूर्व भास्कराचार्य ने यह बात बता दिया था।
It is a matter of great concern that the contribution of our great mathematician Bhaskaracharya has been just forgotten and we wrongly accept Newton as the sole pioneer for the research of principle of gravitational force.
I read about Lilavati many times but it is good that you quoted the particular shlok. Thanks