हिन्दू धर्म ग्रंथ की संस्कृति का एक समालोचनात्मक विश्लेषण

हिन्दू धर्म में अनेकानेक ग्रन्थ लिखे  गए या फिर उनका उल्लेख आता है । स्वभावतः हिन्दू धर्म ग्रंथ, हिन्दू धर्म की ही तरह अति प्राचीन हैं । इनको लिखने का श्रेय हमारे प्राचीन ऋषिओं महार्शिओं को जाता है । जिन्होंने इस महान धरोहर को गहन शोध और मनन के बाद लिपिवद्ध किया ।

विश्व के सबसे पुराने धर्म के रूप में सनातन धर्म या उसका वर्तमान स्वरुप हिन्दू धर्म को माना जाता है । हिंदुत्व को धर्म के रूप में माने जाने की अवधारना वर्तमान काल की ही एक सोच है, अन्यथा इसे धर्म के रूप में कभी भी नहीं माना गया है । हिन्दूत्व दरअसल एक सोच है, जीनें की शैली है । इसे धर्म के नियम कानून के बन्धनों से मुक्त और उससे ऊपर माना गया है । हिन्दू धर्म ग्रंथ इन्ही सब बातों पर बल देता है ।

पोराणिक धर्म ग्रंथों के रचना से सम्बंधित चर्चाएँ समय समय पर होती रही हैं, तथा इन हिन्दू धर्म ग्रंथों के उद्दभव या फिर प्रडेता ऋषिओं को जानने का क्रम भी चलता रहा है । इतना सब होने का बावजूद भी चुकी ये धर्मग्रन्थ अति अति प्राचीन हैं अतः इनके रचयिताओं के बारे में निश्चित जानकारी अभी भी प्राप्त नहीं की जा सकी है और वहां हमेशा ही संशय रहा है ।

हिन्दू धर्म ग्रंथ पर एक परिचर्चा

हिन्दू धर्म ग्रंथ को ब्यवहारिक रूप से मूलतः दो श्रेणीओं में विभक्त किया गया है । ‘श्रुति’ तथा ‘स्मृति’ ।

ऐसी धारणा है कि मुख्य धर्म ग्रंथों की रचना इनके मूल रचनाकार द्वारा नहीं की गई बल्कि उन महर्षिओं द्वारा की गई जिन्होंने इन्हें सुना या बल्कि दुसरे शब्दों में जिन्होंने इनका श्रवण किया । ऐसे धर्म ग्रंथों को ‘श्रुति’ के श्रेणी में रखा गया । उसी तरह वे धर्म ग्रन्थ जिन्हें बहुत बाद में अपने ज्ञान वैभव के बल पर, अपने अनुभवों तथा शोध के बल पर तथा बहुत कुछ अपने यादास्त या स्मृति के बल पर माननीय महर्षिओं के द्वारा जब लिखा गया तो इन्हें ‘स्मृति’ की श्रेणी में रखा गया है । ज्ञातब्य हो ‘श्रुति’ धर्म ग्रंथों के मूल प्रणेता कोई और है तथा इसे लिखने वाले कोई और हैं जबकि ‘स्मृति’ के मूल प्रणेता दैहिक ऋषि गण हैं ।

श्रुति श्रेणी के हिन्दू धर्म ग्रंथ को अपौरुषेय माना जाता है । इसके अंतर्गत वेद, ब्राह्मण, आरण्यक, उपनिषद्, वेदांग, सूत्र आदि ग्रन्थों की गणना की जाती है।

स्मृति श्रेणी में ऋषि प्रणित धर्म ग्रन्थ आते हैं, जिनमे 18 स्मृतियाँ, 18 पुराण तथा रामायण व महाभारत को समाहित माना जाता है ।

वेद

वेद प्राचीनतम हिन्दू धर्म ग्रंथ (Hindu Religious Book) हैं। ऐसी मान्यता है वेद परमात्मा के मुख से निकले हुये वाक्य हैं। वेद शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के ‘विद्’ शब्द से हुई है। विद् का अर्थ है जानना या ज्ञानार्जन, इसलिये वेद को “ज्ञान का ग्रंथ कहा जा सकता है। हिंदू मान्यता के अनुसार ज्ञान शाश्वत है अर्थात् सृष्टि की रचना के पूर्व भी ज्ञान था एवं सृष्टि के विनाश के पश्चात् भी ज्ञान ही शेष रह जायेगा।

चूँकि वेद ईश्वर के मुख से निकले और ब्रह्मा जी ने उन्हें सुना इसलिये वेद को श्रुति भी कहा जाता हैं। वेद संख्या में चार हैं – ऋगवेद,  सामवेद,  अथर्ववेद तथा  यजुर्वेद। ये चारों वेद ही हिंदू धर्म के आधार स्तम्भ हैं।

माना जाता है कि वेद में जो ज्ञान है अगर उसे कोई डिकोड करले यानि की समझ ले तो वह परमात्मा को तुरंत प्राप्त कर सकता है। संस्कृति भाषा में लिखे इन वेदों की कुछ प्रतियां आज विलुप्त हो गई हैं पर जो आज बची हैं उन्हे समझना आज भी थोड़ा कठिन हो जाता है।

ब्राह्मण

ब्राह्मण श्रेणी के हिन्दू धर्म ग्रंथ को वेद का ही अंग मानते हैं । इन्हें मुख्यतः दो भागों में विभक्त किया गया है । पहला जो ‘कर्मकांड’ से सम्बंधित है तथा दूसरा जो ‘ज्ञानकाण्ड’ से सम्बंधित है । ‘ज्ञानकाण्ड’ से सम्बंधित ग्रंथों को उपनिषद् का अंग माना जाता है । ज्ञातब्य हो कि ब्राह्मण धर्म ग्रन्थ खुद (Hindu Religious Book) में मूलरूपेण वेद या उपनिषद् नहीं हैं बल्कि इन्हें उनसे मिलते जुलते क्रम में विभक्त किया गया है । ब्राह्मण ग्रन्थों में यज्ञ-विषय, वानप्रस्थ-आश्रम के नियमों का वर्णन तथा ब्रह्मज्ञान का निरूपण सम्बंधित वर्णन किया गया है । प्रत्येक ब्राह्मण ग्रन्थ किसी न किसी वेद से सम्बन्ध रखता है। ऋग्वेद के ब्राह्मण -ऐतरेय और कौशीतकि, सामवेद के ब्राह्मण -ताण्डय, षड्विंश, सामविधान, वंश, आर्षेय, देवताध्याय, संहितोपनिषत्, छान्दोग्य, जैमिनीय, सत्यायन और भल्लवी है । कृष्ण यजुर्वेद का ब्राह्मण -तैत्तिरीय है और शुक्ल यजुर्वेद का शतपथ है ।अथर्ववेद का ब्राह्मण – गोपथ ब्राह्मण है। ये कुछ मुख्य-मुख्य ब्राह्मण ग्रंथों का चरित चित्रण हैं।

आरण्यक

इस विभाग में ऐतरेय, कौशीतकि और बृहदारण्यक मुख्य हैं।

उपनिषद्

इस विभाग के हिन्दू धर्म ग्रंथ की संख्या 123 से लेकर 1194 तक मानी गई है, किन्तु उनमें 10 ही मुख्य माने गये हैं। ईष, केन, कठ, प्रश्, मुण्डक, माण्डूक्य, तैत्तिरीय, ऐतरेय, छान्दोग्य और बृहदारण्यक के अतिरिक्त श्वेताश्वतर और कौशीतकि को भी महत्त्व दिया गया हैं।
उक्त श्रुति-ग्रन्थों के अलावा कुछ ऐसे ऋषि-प्रणीत ग्रन्थ भी हैं, जिनका श्रुति-ग्रन्थों से घनिष्ट सम्बन्ध है।

वेदांग

शिक्षा, कल्प, व्याकरण, ज्योतिष, छन्द और निरूक्त – ये छ: वेदांग हिन्दू धर्म ग्रंथ  है।

१. शिक्षा – इसमें वेद मन्त्रों के उच्चारण करने की विधि बताई गई है।
२. कल्प – वेदों के किस मन्त्र का प्रयोग किस कर्म में करना चाहिये, इसका कथन किया गया है। इसकी चार शाखायें हैं- श्रौतसूत्र, गृह्यसूत्र धर्मसूत्र और शुल्बसूत्र।
३. व्याकरण – इससे प्रकृति और प्रत्यय आदि के योग से शब्दों की सिद्धि और उदात्त, अनुदात्त तथा स्वरित स्वरों की स्थिति का बोध होता है।
४. निरूक्त – वेदों में जिन शब्दों का प्रयोग जिन-जिन अर्थों में किया गया है, उनके उन-उन अर्थों का निश्चयात्मक रूप से उल्लेख निरूक्त में किया गया है।
५. ज्योतिष – इससे वैदिक यज्ञों और अनुष्ठानों का समय ज्ञात होता है। यहाँ ज्योतिष से मतलब `वेदांग ज्योतिष´ से है।
६. छन्द – वेदों में प्रयुक्त गायत्री, उष्णिक आदि छन्दों की रचना का ज्ञान छन्दशास्त्र से होता है।

सूत्र-ग्रन्थ

१. श्रौतसूत्र – इनमें मुख्य-मुख्य यज्ञों की विधियाँ बताई गई है। ऋग्वेद के सांख्यायन और आश्वलायन नाम के श्रौत-सूत्र हैं। सामवेद के मशक, कात्यायन और द्राह्यायन के श्रौतसूत्र हैं। शुक्ल यजुर्वेद का कात्यायन श्रौतसूत्र और कृष्ण यजुर्वेद के आपस्तम्ब, हिरण्यकेशी, बोधायन, भारद्वाज आदि के 6 श्रौतसूत्र हैं। अथर्ववेद का वैतान सूत्र है।
२. धर्म सूत्र – इनमें समाज की व्यवस्था के नियम बताये गये हैं। आश्रम, भोज्याभोज्य, ऊँच-नीच, विवाह, दाय एवं अपराध आदि विषयों का वर्णन किया गया है। धर्मसूत्रकारों में आपस्तम्ब, हिरण्यकेशी, बोधायन, गौतम, वशिष्ठ आदि मुख्य हैं।
३. गृह्य सूत्र – इनमें गृहस्थों के आन्हिक कृत्य एवं संस्कार तथा वैसी ही दूसरी धार्मिक बातें बताई गई है। गृह्यसूत्रों में सांख्यायन, शाम्बव्य तथा आश्वलायन के गृह्यसूत्र ऋग्वेद के हैं। सामवेद के गोभिल और खदिर गृह्यसूत्र हैं। शुक्ल यजुर्वेद का पारस्कर गृह्यसूत्र है और कृष्ण यजुर्वेद के 7 गृह्य सूत्र हैं जो उसके श्रौतसूत्रकारों के ही नाम पर हैं। अथर्ववेद का कौशिक गृह्य सूत्र है।

स्मृति

जिन महर्षियों ने श्रुति के मन्त्रों को प्राप्त किया है, उन्हींने अपनी स्मृति की सहायता से जिन धर्मशास्त्रों के ग्रन्थों की रचना की है, वे `स्मृति ग्रन्थ´ कहे गये हैं।

इनमें समाज की धर्ममर्यादा – वर्णधर्म, आश्रम-धर्म, राज-धर्म, साधारण धर्म, दैनिक कृत्य, स्त्री-पुरूष का कर्तव्य आदि का निरूपण किया है। मुख्य स्मृतिकार के नाम निम्न हैं जिनके नाम पर ये स्मृतियाँ प्रचलित हुई ।

मनु, अत्रि, विष्णु, हारीत, याज्ञवल्क्य, उशना, अंगिरा, यम, आपस्तम्ब, संवर्त, कात्यायन, बृहस्पति, पराशर, व्यास, शंख, लिखित, दक्ष, गौतम, शातातप तथा वशिष्ठ हुवे ।

इनके अलावा निम्न ऋषि भी स्मृतिकार माने गये हैं और उनकी स्मृतियाँ उपस्मृतियाँ मानी जाती हैं।

गोभिल, जमदग्नि, विश्मित्र, प्रजापति, वृद्धशातातप, पैठीनसि, आश्वायन, पितामह, बौद्धायन, भारद्वाज, छागलेय, जाबालि, च्यवन, मरीचि, कश्यप आदि नाम आते हैं ।

पुराण

वेद में निहित ज्ञान के अत्यन्त गूढ़ होने के कारण आम आदमियों के द्वारा उन्हें समझना बहुत कठिन था, इसलिये रोचक कथाओं के माध्यम से वेद के ज्ञान की जानकारी देने की प्रथा चली। इन्हीं कथाओं के संकलन को पुराण कहा जाता हैं। पौराणिक कथाओं में ज्ञान, सत्य घटनाओं तथा कल्पना का संमिश्रण होता है। पुराण ज्ञानयुक्त कहानियों का एक विशाल संग्रह होता है। पुराणों को वर्तमान युग में रचित विज्ञान कथाओं के जैसा ही समझा जा सकता है। पुराण संख्या में अठारह हैं।

18 पुराणों के नाम विष्णुपुराण में इस प्रकार है :-

ब्रह्मपुराण, पद्मपुराण, विष्णुपुराण, शिवपुराण – वायु पुराण, श्रीमद्भावत महापुराण – देवीभागवत पुराण, नारदपुराण, मार्कण्डेय पुराण, अग्निपुराण, भविष्यपुराण, ब्रह्म वैवर्त पुराण, लिंगपुराण, वाराह पुराण, स्कन्द पुराण, वामन पुराण, कूर्मपुराण, मत्स्यपुराण, गरुड़पुराण तथा ब्रह्माण्ड पुराण ।

इनके अलावा देवी भागवत में 18 उप-पुराणों का उल्लेख भी है :-

गणेश पुराण, नरसिंह पुराण, कल्कि पुराण, एकाम्र पुराण, कपिल पुराण, दत्त पुराण, श्रीविष्णुधर्मौत्तर पुराण, मुद्गगल पुराण, सनत्कुमार पुराण, शिवधर्म पुराण, चार्य पुराण, मानव पुराण, उश्ना पुराण, वरुण पुराण, कालिका पुराण, महेश्वर पुराण, साम्ब पुराण तथा सौर पुराण ।

इनके अलावा कुछ और भी पुराण धर्म ग्रंथों का वर्णन आता है :-

पराशर पुराण, मरीच पुराण, भार्गव पुराण, पशुपति पुराण नाम के 11 उपपुराण या `अतिपुराण´ और भी मिलते हैं।

पुराणों में सृष्टिक्रम, राजवंशावली, मन्वन्तर-क्रम, ऋषिवंशावली, पंच-देवताओं की उपासना, तीर्थों, व्रतों, दानों का माहात्म्य विस्तार से वर्णन है। इस प्रकार पुराणों में हिन्दु धर्म का विस्तार से ललित रूप में वर्णन किया गया है।

कुछ अन्य पुराण-स्वरुप हिन्दू धर्म ग्रंथ भी है, जिनका वर्णन निम्न हैं :-

हरिवंश पुराण, सौरपुराण, महाभारत, श्रीरामचरितमानस, रामायण, श्रीमद्भगवद्गीता, गर्ग संहिता, योगवासिष्ठ तथा प्रज्ञा पुराण ।

ऊपर दिए गए मुख्य हिन्दू धर्म ग्रंथ के अलावा और भी विभिन्न प्रकार की रचनाएँ हैं जो विभिन्न प्रयोजनों के लिए रचित हैं । उनका उद्धरण यहाँ नहीं दिया जा रहा है । फिर कभी आगामी लेख में इन बाकी बचे धर्म ग्रंथों का विवरण दिया जायेगा ।

साभार उद्धरण : विकिपीडिया

 

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Comments (4)
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  • Archana

    Good job