India Explored Paper Making Process
कागज का आविष्कार भारत में कब और कैसे हुवा ?
कागज का आविष्कार सर्व प्रथम भारत में हुवा | क्या आप इस तथ्य के बारे में जानते थे ? आइये इसके बारे में कुच्ज्ज विशिष्ट जानकारियां प्राप्त करें |
कागज बनाना ( Paper Making Process ) पूरी दुनिया को भारत ने सिखाया | कागज का आविष्कार सर्व प्रथम भारत में हुवा, इसका प्रमाण यहाँ हम क्रम वद्ध तरीके से देंगें | दरअसल कागज बनाने का कार्य सबसे पहले भारत मे शुरू हुआ | हमारे भारत मे एक घास होती है उसको सन कहते है और एक घास होती है उसको मुंज कहती है | मुंज घास बहुत तीखी होती है ऊँगली को काट सकती है और खून निकाल सकती है | सन वाली घास थोड़ी नरम होती है जिससे ऊँगली कटती नही है। भारत के हर गाँव मे इन घासों को प्राचीन काल से ही अपने दैनिक जरूरतों कि पूर्ति के लिए उगाया जाता रहा है |
मुंज घास पूर्वी भारत और मध्य भारत के हर गाँव मे होती है, बंगाल मे, बिहार मे, झाड़खंड मे, ओड़िसा मे, असम मे कोई गाँव ऐसा नही है, जहाँ सन न हो और मुंज न हो | तो जिन इलाके मे सन और मुंज सबसे जादा होती रही है इसी इलाके मे सबसे पहले कागज बनना शुरू हुआ | वो सन की घास से और मुंज की घास से हमने सबसे पहले कागज बनाया | कागज का आविष्कार सबसे पहले हमने दुनिया को इसी घास से बना कर दिया | और वो कागज बनाने की तकनीक आज से २००० साल पुरानी है | चीन के दस्ताबेजों का अध्यन करने से भी इन बातों का पता चलता है | चिनीओं के दस्ताबेजों मे ये लिखा हुआ है कि उन्होंने जो कागज बनाना जो ( Paper Making Process ) सिखा वो भारत से सिखा, और वह भी सन और मुंज की रस्सी से |
कागज निर्माता सन के पौधों से बने पुराने रस्से, कपड़े और जाल खरीदते हैं। उन्हें टुकडों में काटकर फिर पानी में कुछ दिनों के लिए डुबोते हैं। आमतौर पर पानी में डुबोने का काम पांच दिनों तक किया जाता है। उसके बाद इन चीजों को एक टोकरी में नदी में धोया जाता है और उन्हें जमीन में लगे पानी के एक बर्तन में डाला जाता है। इस पानी में सेड़गी मिट्टी का घोल छह हिस्सा और खरितचूना सात हिस्सा होता है। इन चीजों को उस हाल में आठ या दस दिनों तक रखने के बाद उन्हें फिर गिले अवस्था में ही इसे पीट-पीट कर इसके रेशे अलग कर दिए जाते है। उसके बाद इसे साफ छत पर धूप में सुखाया जाता है, फिर उसे पहले की तरह ताजे पानी में डुबोया जाता है। यह प्रक्रिया तीन बार हो जाने के बाद सन मोटा भूरा कागज बनाने ( Paper Making Process ) के लिए तैयार हो जाता है इस तरह की सात या आठ धुलाई के बाद वह ठीक-ठाक सफेदी वाला कागज बनाने लायक हो जाता है। प्राचीन भारत में कागज का आविष्कार इन्ही तरीको से हुवा था ।
सेड़गी मिट्टी एक ऐसी मिट्टी है जिसमें जीवाश्म के क्षारीय गुण होते हैं। यह मिटटी भारत में बड़ी मात्रा में पाई जाती है और इसका प्रयोग व्यापक रुप से धुलाई करने, ब्लीच करने , साबुन बनाने और तमाम तरह के अन्य कामों के लिए प्राचीन काल से ही होता रहा है। कागज का आविष्कार भी इन मिटटी के प्रयोग से संभव हो पाई थी ।
चलिए हम पुनः वापस कागज बनाने की प्रकिया पर आते हैं | तो, इस तरह तैयार किए गए भुरकुस को हौज के पानी में भिगोया जाता है। हौज के एक तरफ संचालक बैठता है और डंडियां निकाल कर सन की परत को एक फ्रेम पर फैला देता है। इस फे्रम को वह कुंड में तब तक धोता है जब तक वह भुरकुस के तिरते कपड़ों से दूधिया सफेद न हो जाए। अब वह फ्रेम और स्क्रीन को पानी में लंबवत डुबोता है और क्षैतिज अवस्था में ऊपर लाता है। वहां वह फ्रेम को अगल-बगल फिर आगे-पीछे उलटता-पलटता है ताकि वे कण परदे पर बराबर से फैल जाएं। फिर वह उसे पानी से ऊपर उठा कर डंडियों पर एक मिनिट के लिए ऊपर रखता है। यह प्रक्रिया कागज बनाने ( Paper Making Process ) में बार बार दुहराई जाती है |
पानी में इसी तरह फिर डुबोए जाने के बाद कागज का नया पेज तैयार हो जाता है। अब उसे विस्तारक के स्क्रीन से हटाकर, स्क्रीन और शीट के ऊपरी हिस्से को एक इंच भीतर की तरफ मोडा जाता है। इसका मतलब यह है कि शीट का उतना हिस्सा स्क्रीन से अलग कर दिया जाएगा। अब स्क्रीन को पलट दिया जाता है कागज का जो हिस्सा पहले से अलग हो चुका होता है उसे चटाई पर बिछा दिया जाता है । स्क्रीन को आराम से कागज से हटा लिया जाता है। इस तरह कागज बनाने वाला एक के बाद एक शीट निकालता रहता है। वह दिन भर मं 250 शीट बनाता है, उन्हें एक के ऊपर एक करके रखने के बाद सन के मोटे कपडे़ कागज के आकार के बराबर होता है। इनके ऊपर वह लकड़ी का मोटा पटरा रख देता है जो आकार में कागजों से बड़ा होता है। यह पटरा अपने दबाव से कागज की गीली शीटों से पानी निकाल देता है। इस प्रक्रिया को तेज करने के लिए कागज बनाने वाला खुद उस पर बैठ जाता है। इस गट्ठर को रात भर के लिए एक तरफ रख दिया जाता है। सुबह इनमें से एक-एक शीट निकाली जाती है उन्हें ब्रश से बराबर किया जाता है ।
कागज की इन शीटों को घर की प्लास्टर लगी दीवारों पर चिपका दिया जाता है। सूख जाने के बाद उन्हें छुड़ा लिया जाता है और एक साफ चटाई या कपडे़ पर बिछा दिया जाता है। इनको चावल के पानी में डूबे कंबल से रगड़ा जाता है और फिर घर में इस उद्देश्य के लिए बनी रस्सी पर सुखाने के लिए लटका दिया जाता है। जब यह पूरी तरह से सूख जाए तो उसे चैकोट काट लिया जाता है इस आकार के लिए एक मानक शीट को रखकर चाकू चलाया जाता है । इस प्रक्रिया के बाद कागज की यह चादरें अन्य व्यक्ति के पास ले जाई जाती हैं जिसे वह दोनों हाथों में गोल मूरस्टाने ग्रेनाइट लेकर रगड़ता हैं। इसके उपरांत वह शीट को मोड़ कर बिक्री के लिए भेज देता है। ज्यादा बारीक कागज दुबारा पालिश किया जाता है। कटे हुए टुकड़ों और खराब हुई चादरों को पानी में रखकर कुचल दिया जाता है और फिर ऊपर वर्णित प्रक्रिया के मुताबिक पुननिर्मित किया जाता है।
उपर्युक्त वर्णित विधि भारत में प्राचीन काल से कागज बनाने ( Paper Making Process ) के लिए अपनाई जाती रही है, और इस तरह भारत में कागज का आविष्कार हुवा । आज आधुनिक युग में कागज बनाने के कार्यों को मशीन से करने का तरीका ढूंढ लिया गया है |
Courtesy: Lecture series of Shri Rajeev Dixit