शिवलिंग की कहानी: लिंग सम्बंधित कुछ मिथक व भ्रांतियां

शिवलिंग की कहानी

 

क्या आप शिवलिंग की कहानी जानते हैं कि शिवलिंग का मतलब क्या होता है  और, शिवलिंग किस चीज का प्रतिनिधित्व करता है ?

दरअसल कुछ मूर्ख और कुढ़मगज किस्म के प्राणियों ने परम पवित्र शिवलिंग को जननांग समझ कर  पता नही क्या-क्या और कपोल कल्पित शिवलिंग की कहानी सम्बंधित अवधारणाएं फैला रखी हैं । यह दुराग्रहवश किसी धर्म के दुष्प्रचार का हिस्सा भी हो सकता है, क्योंकि इस धरती पर मुग़ल और अंग्रेज शाशकों ने तक़रीबन १२०० वर्षों तक राज्य किया है ।

 

 

शिवलिंग क्या है ? शिवलिंग वातावरण सहित घूमती धरती तथा सारे अनन्त ब्रह्माण्ड ( क्योंकि, ब्रह्माण्ड गतिमान है ) का अक्स/धुरी (axis) है।

The whole universe rotates through a shaft called Shiva Lingam.

दरअसल शिवलिंग की कहानी सम्बंधित गलतफहमी भाषा के रूपांतरण और, मलेच्छों द्वारा हमारे पुरातन धर्म ग्रंथों को नष्ट कर दिए जाने  तथा, अंग्रेजों द्वारा इसकी व्याख्या से भी उत्पन्न हुआ हो सकता है ।

जैसा कि  हम सभी जानते है कि एक ही शब्द के. विभिन्न भाषाओँ में अलग-अलग अर्थ निकलते हैं । उदाहरण के लिए यदि हम हिंदी के एक शब्द “”सूत्र”’ को ही ले लें तो सूत्र मतलब डोरी/धागा गणितीय सूत्र कोई भाष्य अथवा लेखन भी हो सकता है जैसे कि  नासदीय सूत्र ब्रह्म सूत्र इत्यादि । उसी प्रकार “”अर्थ”” शब्द का भावार्थ सम्पति भी हो सकता है और मतलब (मीनिंग) भी ।

ठीक बिल्कुल उसी प्रकार शिवलिंग के सन्दर्भ में लिंग शब्द से अभिप्राय. चिह्न, निशानी, गुण, व्यवहार या प्रतीक है।

ध्यान देने योग्य बात है कि “लिंग” एक संस्कृत का शब्द है जिसके निम्न अर्थ है :
त आकाशे न विधन्ते -वै०। अ ० २ । आ ० १ । सू ० ५
अर्थात रूप, रस, गंध और स्पर्श ये लक्षण आकाश में नही है किन्तु शब्द ही आकाश का गुण है ।
निष्क्रमणम् प्रवेशनमित्याकशस्य लिंगम् -वै०। अ ० २ । आ ० १ । सू ० २ ०
अर्थात जिसमे प्रवेश करना व् निकलना होता है वह आकाश का लिंग है अर्थात ये आकाश के गुण है ।
अपरस्मिन्नपरं युगपच्चिरं क्षिप्रमिति काललिङ्गानि । -वै०। अ ० २ । आ ० २ । सू ० ६
अर्थात जिसमे अपर, पर, (युगपत) एक वर, (चिरम) विलम्ब, क्षिप्रम शीघ्र इत्यादि प्रयोग होते है, इसे काल कहते है, और ये काल के लिंग है ।
इत इदमिति यतस्यद्दिश्यं लिंगम । -वै०। अ ० २ । आ ० २ । सू ० १ ०
अर्थात जिसमे पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, ऊपर व् नीचे का व्यवहार होता है उसी को दिशा कहते है मतलब कि ये सभी दिशा के लिंग है ।
इच्छाद्वेषप्रयत्नसुखदुःखज्ञानान्यात्मनो लिंगमिति -न्याय० अ ० १ । आ ० १ । सू ० १ ०
अर्थात जिसमे (इच्छा) राग, (द्वेष) वैर, (प्रयत्न) पुरुषार्थ, सुख, दुःख, (ज्ञान) जानना आदि गुण हो, वो जीवात्मा है और, ये सभी जीवात्मा के लिंग अर्थात कर्म व् गुण है ।

 

 शिवलिंग की कहानी का तार्किक अध्यन करने से पता चलता है कि शिव को  शून्य, आकाश, अनन्त, ब्रह्माण्ड और निराकार परमपुरुष का प्रतीक होने के कारन  इसे लिंग कहा गया है ।

स्कन्दपुराण में स्पष्ट कहा है कि आकाश स्वयं लिंग है, एवं धरती उसका पीठ या आधार है ।

ब्रह्माण्ड का हर चीज अनन्त शून्य से पैदा होकर अंततः उसी में विलीन हो जाता है, यानि कि उसी में  लय हो जाता है, ले होने के कारण इसे लिंग कहा गया है ।

नामकरण के अनुशार, लिंग स्तम्भ को भी कहते हैं । यही कारन है कि लिंग का प्रयोग कुछ अन्य नामो में इस तरह से भी पाया गया  है, जैसे कि प्रकाश स्तंभ/लिंग, अग्नि स्तंभ/लिंग, उर्जा स्तंभ/लिंग, ब्रह्माण्डीय स्तंभ/लिंग (cosmic pillar/lingam)  इत्यादि ।

शिवलिंग की कहानी में ध्यान देने योग्य बात है कि इस ब्रह्माण्ड में दो ही चीजे है : ऊर्जा और प्रदार्थ । इसमें से हमारा शरीर प्रदार्थ से निर्मित है जबकि आत्मा एक ऊर्जा है ।

ठीक इसी प्रकार शिव पदार्थ और शक्ति ऊर्जा का प्रतीक बन कर  शिवलिंग कहलाते हैं । क्योंकि ब्रह्मांड में उपस्थित समस्त ठोस तथा उर्जा शिवलिंग में निहित है ।

सारांशतः अगर इसे धार्मिक अथवा आध्यात्म की दृष्टि से बोलने की जगह शुद्ध वैज्ञानिक भाषा में बोला जाए तो  हम कह सकते हैं कि शिवलिंग और कुछ नहीं बल्कि हमारे ब्रह्मांड की आकृति है ।

अगर इसे धार्मिक अथवा आध्यात्म की भाषा में बोला जाए तो शिवलिंग  भगवान शिव और देवी शक्ति (पार्वती) का आदि-अनादि एकल रूप है तथा पुरुष और प्रकृति की समानता का प्रतीक है ।

शिवलिंग की कहानी हमें बोध कराती है कि इस संसार में न केवल पुरुष का और न ही केवल प्रकृति (स्त्री) का वर्चस्व है बल्कि, दोनों एक दूसरे के पूरक हैं और दोनों ही समान हैं ।

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शिवलिंग की कहानी को और ठीक से समझने के लिए आप जरा आईसटीन का वो सूत्र याद करें जिसके आधार पर उसने परमाणु बम बनाया था । क्योंकि  उस सूत्र ने ही परमाणु के अन्दर छिपी अनंत ऊर्जा की एक झलक दिखाई जो कितनी विध्वंसक थी ये सर्वविदित है । और परमाणु बम का वो सूत्र था….. e / c = m c {e=mc^2}

अब ध्यान दें कि ये सूत्र एक सिद्धांत है  जिसके अनुसार पदार्थ को पूर्णतया ऊर्जा में बदला जा सकता है ।

अर्थात, पदार्थ और उर्जा  दो अलग-अलग चीज नहीं  बल्कि , एक ही चीज हैं । परन्तु वे दो अलग-अलग चीज बनकर ही सृष्टि का निर्माण करते हैं । और जिस बात को आईसटीन ने अब बताया  है उस रहस्य को तो हमारे ऋषियो ने हजारो-लाखों साल पहले ही ख़ोज लिया था ।

यह सर्वविदित है कि हमारे संतों/ऋषियों ने हमें वेदों और उपनिषदों का ज्ञान लिखित रूप में प्रदान किया है ।

परन्तु, उन्होंने कभी यह दावा नहीं किया कि यह उनका काम है बल्कि, उन्होंने हर काम के अंत में स्वीकार किया कि वे हमें वही बता रहे हैं जो, उन्हें अपने पूर्वजों द्वारा कहा गया है ।

लगभग १३.७ खरब वर्ष पुराना  सार्वभौमिक ज्ञान हमें तमिल और संस्कृत जैसी महान भाषाओँ में भी  उपलब्ध होता है ।

भावार्थ बदल जाने के कारण इसे अंग्रेजी में अनुवाद नहीं किया गया है  क्योंकि अंग्रेजी एक कमजोर भाषा है जो संस्कृत के हुबहू रूपांतर के लिए बिलकुल ही उपयुक्त नहीं ।

इसके लिए एक बहुत ही छोटा सा उदाहरण देना ही पर्याप्त होगा कि आज “गूगल ट्रांसलेटर” में लगभग सभी भाषाओँ का समावेश है परन्तु संस्कृत का नही । ऐसा नहीं कि गूगल ने कोशिश नहीं किया बल्कि संस्कृत का व्याकरण इतना विशाल तथा दुर्लभ है कि काफी कठिनाइयाँ आती है ।

संस्कृत अपने मूल स्वरुप में बहुत उपयोगी है, यही कारण कि प्रख्यात खोज संश्था  नासा संस्कृत को अपने विभिन्न प्रयोगों में अपनाना चाहती है । इस सन्दर्भ में  नासा वालों के  बात का सबूत यहाँ देख सकते हैं : Courtesy NASA 

खैर हम फिर शिवलिंग पर आते हैं…..

शिवलिंग का प्रकृति में बनना हम अपने दैनिक जीवन में भी देख सकते है ।

जब किसी स्थान पर अकस्मात् उर्जा का उत्सर्जन होता है तो, उर्जा का फैलाव अपने मूल स्थान के चारों ओर एक वृताकार पथ में तथा उपर व नीचे की ओर अग्रसर होता है अर्थात दशोदिशाओं (आठों दिशों की प्रत्येक डिग्री (360 डिग्री)+ऊपर व नीचे ) होता है । जिसके फलस्वरूप एक क्षणिक शिवलिंग आकृति की प्राप्ति होती है ।

उसी प्रकार बम विस्फोट से प्राप्त उर्जा का प्रतिरूप एवं, शांत जल में कंकर फेंकने पर प्राप्त तरंग (उर्जा) का प्रतिरूप भी शिवलिंग का निर्माण करते हैं ।

दरअसल सृष्टि के आरम्भ में महाविस्फोट के पश्चात् उर्जा का प्रवाह वृत्ताकार पथ में तथा ऊपर व नीचे की ओर हुआ फलस्वरूप एक महाशिवलिंग का प्राकट्य हुआ जिसका वर्णन हमें लिंगपुराण, शिवमहापुराण, स्कन्द पुराण आदि में इस प्रकार मिलता है कि आरम्भ में निर्मित शिवलिंग इतना विशाल (अनंत) था कि देवता आदि मिल कर भी उस लिंग के आदि और अंत का छोर या शाश्वत अंत न पा सके ।

हमारे पुराणो में कहा गया है कि प्रत्येक महायुग के पश्चात समस्त संसार इसी शिवलिंग में समाहित (लय) होता है तथा इसी से पुनः सृजन होता है ।

इस तरह सामान्य भाषा में शिवलिंग की कहानी कही जाए तो कहा जा सकता है कि उसी आदि शक्ति के आदि स्वरुप (शिवलिंग ) से इस समस्त संसार की उत्पति हुई तथा उसका यह गोलाकार/सर्पिलाकार स्वरुप प्रत्यक्ष अथवा प्ररोक्ष तथा प्राकृतिक अथवा कृत्रिम रूप से हमारे चारों और स्थित है ।

शिवलिंग का प्रतिरूप ब्रह्माण्ड के हर जगह मौजूद है,  जैसे कि  हमारी आकाश गंगा, हमारी पडोसी अन्य आकाश गंगाएँ (पांच -सात -दस नही, अनंत है) , ग्रहों, उल्काओं आदि की गति (पथ), ब्लैक होल की रचना , संपूर्ण पृथ्वी पर पाए गये सर्पिलाकार चिन्ह ( जो अभी तक रहस्य बने हए है.. और, हजारों की संख्या में है.. तथा जिनमे से अधिकतर पिरामिडों से भी पुराने है जैसे समुद्री तूफान , मानव डीएनए, परमाणु की संरचना इत्यादि) ।

याद रखें  शिव को शाश्वत एवं अनादी, अनत निरंतर कहा जाता है । इसके पीछे तर्क है कृपया कारण ढूंढे ।

याद रखे सही ज्ञान ही आधुनिक युग का सबसे बड़ा हथियार है,  देश और धर्म के दुश्मनों के खिलाफ । अतः निस्वार्थ भाव से शिवलिंग की कहानी को मनन और चिंतन करने की जरूरत है ।

 

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