श्री कृष्ण और १६ कलाएं

श्री कृष्ण और १६ कलाएं : क्या होती हैं सोलह कलाएं ??

श्री कृष्ण को संपूर्ण अवतार माना जाता है । वह सोलह कलाओं के स्वामी थे। सामान्य मनुष्य में पांच कलाएं अभिव्यक्त होती हैं। यही मनुष्य योनि की पहचान भी है। पांच कलाओं से कम होने पर पशु, वनस्पति आदि की योनि बनती है और पांच से आठ कलाओं तक श्रेष्ठ मनुष्य की श्रेणी बनती है। अवतार नौ से लेकर सोलह कलाओं तक से युक्त होते हैं। श्रीराम बारह और भगवान कृष्ण सोलह कलाओं के स्वामी माने गए हैं ।

भगवान श्री कृष्ण के बारे में कहा जाता था कि वह संपूर्णावतार थे और मनुष्य में निहित सभी सोलह कलाओं के स्वामी थे। यहां पर कला शब्द का प्रयोग किसी ‘आर्ट’ के संबंध में नहीं किया गया है बल्कि मनुष्य में निहित संभावनाओं की अभिव्यक्ति के स्तर के बारे में किया गया है। शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार ईश्वर का पूर्णावतार, ईश्वर के सोलह अंशों (कला) से पूर्ण होता है। सामान्य मनुष्य में पांच अशों (कलाओं) का समावेश होता है। यही मनुष्य योनि की पहचान भी है। पांच कलाओं से कम होने पर पशु, वनस्पति आदि की योनि बनती है और पांच से आठ कलाओं तक श्रेष्ठ मनुष्य की श्रेणी बनती है। अवतार नौ से सोलह कलाओं से युक्त होते हैं। पंद्रह कलाओं से युक्त व्यक्ति को अंशावतार ही माना जाता है। श्रीराम बारह और भगवान कृष्ण सोलह कलाओं से युक्त थे। एक मान्यता यह भी है कि राम सूर्यवंशी हैं तो सूर्य की बारह कलाओं के कारण, उनके भीतर बारह कलाएं थी। कृष्ण चंद्रवंशी हैं तो चंद्रमा की सोलह कलाओं से युक्त होने के कारण पूर्णावतार हैं। ‘कला’ की तरह ही अनेक ऐसे शब्द हैं जिनके अर्थ कालांतर में बदल गए। जिनमें से एक शब्द ‘संग्राम’ भी है। प्राचीन काल में विभिन्न ग्रामों के सम्मेलन को संग्राम कहते थे। इन सम्मेलनों में अक्सर झगड़े होते थे और ये युद्ध जैसा रूप धारण कर लेते थे। धीरे-धीरे संग्राम शब्द युद्ध के लिए प्रयुक्त होने लगा। ‘शास्त्र’ शब्द का स्थान भी कला ने बहुत सहजता के साथ ले लिया। पाक शास्त्र , सौंदर्य शास्त्र, शिल्प शास्त्र आदि सब क्रमशः पाक कला, सौंदर्य कला, शिल्प कला आदि हो गए।

 

श्री कृष्ण की १६ कलाएं

कला को सरल शब्दों में एक तरह का गुण या विशेषता भी कहा जा सकता है। श्री कृष्ण जी में ही ये सारी खूबियां समाविष्ट थीं। इन सोलह कलाओं और उन्हें धारण करने वाले का विवरण इस तरह का है –

 

1. श्री संपदा : श्री कला से संपन्न व्यक्ति के पास लक्ष्मी का स्थायी निवास होता है। ऐसा व्यक्ति आत्मिक रूप से धनवान होता है। ऐसे व्यक्ति के पास से कोई खाली हाथ वापस नहीं आता। इस कला से संपन्न व्यक्ति ऐश्वर्यपूर्ण जीवनयापन करता है।
2. भू संपदा : जिसके भीतर पृथ्वी पर राज करने की क्षमता हो तथा जो पृथ्वी के एक बड़े भू-भाग का स्वामी हो, वह भू कला से संपन्न माना जाता है।
3. कीर्ति संपदा : कीर्ति कला से संपन्न व्यक्ति का नाम पूरी दुनिया में आदर सम्मान के साथ लिया जाता है। ऐसे लोगों की विश्वसनीयता होती है और वह लोककल्याण के कार्यों में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं।
4. वाणी सम्मोहन : वाणी में सम्मोहन भी एक कला है। इससे संपन्न व्यक्ति की वाणी सुनते ही सामने वाले का क्रोध शांत हो जाता है। मन में प्रेम और भक्ति की भावना भर उठती है।
5. लीला : पांचवीं कला का नाम है लीला। इससे संपन्न व्यक्ति के दर्शन मात्र से आनंद मिलता है और वह जीवन को ईश्वर के प्रसाद के रूप में ग्रहण करता है।
6. कांतिः जिसके रूप को देखकर मन अपने आप आकर्षित हो जाता हो, जिसके मुखमंडल को बार-बार निहारने का मन करता हो, वह कांति कला से संपन्न होता है।
7. विद्याः सातवीं कला का नाम विद्या है। इससे संपन्न व्यक्ति वेद, वेदांग के साथ ही युद्घ, संगीत कला, राजनीति एवं कूटनीति में भी सिद्घहस्त होते हैं।
8. विमलाः जिसके मन में किसी प्रकार का छल-कपट नहीं हो और जो सभी के प्रति समान व्यवहार रखता हो, वह विमला कला से संपन्न माना जाता है।
9. उत्कर्षिणि शक्तिः इस कला से संपन्न व्यक्ति में लोगों को कर्म करने के लिए प्रेरित करने की क्षमता होती है। ऐसे व्यक्ति में इतनी क्षमता होती है कि वह लोगों को किसी विशेष लक्ष्य की प्राप्ति के लिए प्रेरित कर सकता है।
10. नीर-क्षीर विवेक : इससे संपन्न व्यक्ति में विवेकशीलता होती है। ऐसा व्यक्ति अपने विवेक से लोगों का मार्ग प्रशस्त कर सकने में सक्षम होता है।
11. कर्मण्यताः इस कला से संपन्न व्यक्ति में स्वयं कर्म करने की क्षमता तो होती है। वह लोगों को भी कर्म करने की प्रेरणा दे सकता है और उन्हें सफल बना सकता है।
12. योगशक्तिः इस कला से संपन्न व्यक्ति में मन को वश में करने की क्षमता होती है। वह मन और आत्मा का फर्क मिटा योग की उच्च सीमा पा लेता है।
13. विनयः इस कला से संपन्न व्यक्ति में नम्रता होती है। ऐसे व्यक्ति को अहंकार छू भी नहीं पाता। वह सारी विद्याओं में पारंगत होते हुए भी गर्वहीन होता है।
14. सत्य-धारणाः इस कला से संपन्न व्यक्ति में कोमल-कठोर सभी तरह के सत्यों को धारण करने की क्षमता होती है। ऐसा व्यक्ति सत्यवादी होता है और जनहित और धर्म की रक्षा के लिए कटु सत्य बोलने से भी परहेज नहीं करता।
15. आधिपत्य : इस कला से संपन्न व्यक्ति में लोगों पर अपना प्रभाव स्थापित करने का गुण होता है। जरूरत पड़ने पर वह लोगों को अपने प्रभाव की अनुभूति कराने में सफल होता है।
16. अनुग्रह क्षमताः इस कला से संपन्न व्यक्ति में किसी का कल्याण करने की प्रवृत्ति होती है। वह प्रत्युपकार की भावना से संचालित होता है। ऐसे व्यक्ति के पास जो भी आता है, वह अपनी क्षमता के अनुसार उसकी सहायता करता है।
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हमारे ग्रंथों में अब तक हुए अवतारों का जो विवरण है उनमें मत्स्य, कश्यप और वराह में एक-एक कला, नृसिंह और वामन में दो-दो और परशुराम मे तीन कलाएं बताई गई हैं। श्री राम ने बारह कलाओं के साथ अवतार लिया था। भगवान श्री कृष्ण ही सोलह कलाओं के स्वामी माने जाते हैं।
Reference: Various Hindu Mythologies as propagates in Hindu Society.
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Comments (2)
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  • swapnil gupta

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