क़ुतुब मीनार का इतिहास
क़ुतुब मीनार भारतीय स्थाप्य कला का एक अनुपम और उत्कृष्ट उदहारण है | एक चर्चा के अनुशार इसका निर्माण सम्राट विक्रमादित्य काल में खगोल विद्या का अध्ययन करने के लिए आचार्य वाराहमिहिर ने इस नक्षत्र स्तंभ की स्थापना की थी |
महाकवि काली दास महाकाल के उपासक थे | इनकी प्रेरणा से तथा सम्राट विक्रमादित्य की सहायता से खगोल विद्या का अध्ययन करने के लिए आचार्य वाराहमिहिर ने तत्कालीन हस्तिनापुर में एक नक्षत्र स्तंभ की स्थापना की थी जो कि तत्कालीन स्थापत्य कला का अनुपम एवं उत्कृष्ट उदहारण है | आचार्य इस स्तंभ के ऊपर खड़े होकर नक्षत्रों की गति, अवस्था एवं उसके भविष्य में पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन किया करते थे | कालांतर में इसी स्तंभ का नाम क़ुतुब मीनार पड़ा है |
विधर्मी आक्रांता कुतुबुद्दीन ऐबक ने अपने काल के इस नक्षत्र स्तंभ की ऊपर के परतों को खुरच कर तेजो महालय (ताजमहल) की भांति इसे मुग़ल स्थापत्य कला का एक अद्भुत उदहारण बता दिया तथा इसके नाम का अनुवाद नक्षत्र स्तंभ (क़ुतुब मीनार) कर दिया |
इतिहास में दर्ज घटनाक्रम के हिसाब से भी यही प्रमाण मिलता है कि फिरोज साह तुगलक ने क़ुतुब मीनार के उपरी दो तले जो समय के साथ टूट फूट गए थे उनका महज निर्माण ही करवाया था |
इतिहास में सिकंदर लोदी द्वारा भी १५०५ ईस्वी में इस मीनार का जीर्णोद्धार किया गया था ऐसे प्रमाण मिलते है, कहा जाता है कि उस समय इस क़ुतुब मीनार का काफी हिस्सा एक भूकंप के कारण छत विछत हो गया था |
आचार्य वाराहमिहिर के तत्कालीन हस्तिनापुर(दिल्ली ) के निवास स्थान को अब महरौली कहा जाता है जो कि आचार्य के नाम के अनुरूप ही है |
कुतुबुद्दीन ने मात्र चार वर्षों तक शासन किया था और आज के विज्ञान के लिए इतने कम समय में ऐसे स्तंभ का निर्माण करवा पाना असंभव है, तो कुतुबुद्दीन ने कैसे मात्र चार वर्ष में उस स्तंभ का निर्माण करा लिया | स्पस्टतः क़ुतुब मीनार के पूर्व कालिक होने की थ्यूरी को बल मिलता है |
sach ko kabhi bhi jhoot nahi daba sakta h mr goverments changs ho ne s history changs nahi ho sakti h mr