भारत का प्राचीन इतिहास हमें परिचित कराता है कि यहाँ विज्ञान, गणित, ज्योतिष और दर्शन शास्त्र का अद्वित्य विकास हुआ ।
यह राष्ट्र कणाद, कपिल, भारद्वाज, नागार्जुन, चरक, सुश्रुत, वराहमिहिर, आर्यभट और भास्कराचार्य जैसे वैज्ञानिकों की जन्मभूमि और कर्मभूमि रहा है।
इन वैज्ञानिकों ने गणित, ज्योतिष, चिकित्साशास्त्र, रसायनशास्त्र इत्यादि क्षेत्रों में अभूतपूर्व योगदान दिया।
यह लेख भारत का प्राचीन इतिहास के बारे में विज्ञान और प्रोद्योगिकी छेत्र में इसके योगदान और उनके पारंपरिक सरंक्षण का एक संक्षिप्त अवलोकन है।
इस लेख में प्राचीन भारतीय वैज्ञानिकों के गौरवपूर्ण योगदान का उदाहरण देकर वर्तमान पीढ़ी की अज्ञानता व उदासीनता को समाप्त करने का एक प्रयास है ।
आज के आधुनिक पढ़े लिखे शिक्षित नौजवानों को यह जानने की आवश्यकता है कि यह दुराग्रह पुर्वार्क या फिर षणयन्त्र पूर्वक हमारे मन में यह बैठाया गया है कि हमारा विज्ञान पश्चिम की देन है और हमारी सभ्यता भारत की देन है। जबकि सच यह है कि दोनों हीभारत की देन है।
यूरोपिय यह मानते हैं कि हम (भारतीय) हर दृष्टि से उनसे श्रेष्ठ हैं और वर्तमान में भी हो सकते हैं, किन्तु यह वह प्रकट नही करते क्योंकि उन्हे यह मालूम है कि हम भारतीय कुत्सित हो चुके हैं, और यही उनकी सफलता है।
एक यूरोपिय प्रोफेसर मैकडोनाल का कहना है कि ‘विज्ञान पर यह बहस होनी चाहिए कि भारत और यूरोप में कौन महत्वपूर्ण है। वह आगेकहता है कि यह पहला स्थान है जहाँ भारतीयों ने महान रेखागणित की खोज की जिसे पूरी दुनिया नें अपनाया और दशमलव की खोज नें गणित व विश्व को नया आयाम दिया।
वह आगे कहते हुवे लिखता है कि यहाँ बात सिर्फ गणित की नही है, यह उनके विकसित समाज का प्रमाण है जिसे हम अनदेखा करते हैं। 8वीं से 9वीं शताब्दी में भारत अंकगणित और बीजगणित में अरब देशों का गुरू था जिसका अनुसरण बहुत बाद में यूरोप नें किया है ।
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भारत का प्राचीन इतिहास का अध्यन से यह बात सामने आती है कि भारतीय चिकित्सा विज्ञान को ‘आयुर्वेद’ नाम से प्राचीन भारत के काल से ही जाना जाता रहा है। और यह केवल दवाओं और थिरैपी का ही नही अपितु सम्पूर्ण जीवन पध्दति का वर्णन करता है।
डॉ. कैरल जिन्होने मेडिसिन के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार जीता है तथा वह लगभग 35 वर्षों तक रॉक फेल्टर इन्स्टीटयूट ऑफ मेडिकल रिसर्च, न्यूयार्क में कार्यरत रहै हैं। उनका कहना है कि ‘आधुनिक चिकित्सामानव जीवन को और खतरे में डाल रही है। और पहले की अपेक्षा अधिक संख्या में लोग मर रहे हैं। जिसका प्रमुख कारणनई-नई बिमारियाँ हैं जिनमें इन दवाओं का भी हाथ है।
एक तरफ तो हमारा वर्तमान चिकित्सा विज्ञान है जिसके बारे में डॉ. कैरल का मनतब्य आप जान ही चुके । वही दूसरी ओर हमारा भारतीय चिकित्सा विज्ञान है जो काफी पहले से एक विकसित विज्ञान रहा है। और यह उससमय रहा है जब पृथ्वी पर किसी अन्य देश को चिकित्सा के विषय में जानकारी ही नही थी।
‘चरक’ जो महान चिकित्सा शास्त्री थे उन्होंने हमारे भारतीय चिकित्सा विज्ञान के बारे में एक जगह कहा है कि ”आयुर्वेद एक विज्ञान है और यह हमें सर्वोत्तम् जीवन जीने की स्वतंत्रता प्रदान करता है”।
आधुनिक चिकित्सा वर्तमान में बहुत ही विकसित हो चुकी है, लेकिन इसका श्रेय भारत को देना चाहिए जिसनें सर्वप्रथम इस शिक्षा से विश्व को अवगत कराया और विश्वगुरु बना।
यह किसी भारतीय के विचार नही हैं, इससे हम यह समझ सकते हैं कि हमें अपनी शिक्षा का ही ज्ञान नही रहा तो हम इसका प्रचार व प्रसार कैसे कर सकते हैं।
भारत का प्राचीन इतिहास का अध्यन करने से हमें यह ज्ञात होता है कि ऐसा नही है कि केवल भारत व इसके आस-पास ही भारतीय चिकित्साशास्त्र का बोलबाला रहा है। यद्यपि ऐसे अनेकों प्रमाण हमारे पास उपलब्ध हैं जिससे यह जानकारी प्राप्त होती है कि भारतीय चिकित्सा शास्त्र व भारतीय चिकित्सा शास्त्रियों नें पूरे एशिया यहाँ तक कि मध्य पूर्वी देशों, इजिप्ट, इज्रराइल, जर्मनी, फ्रांस, रोम, पुर्तगाल, इंलैण्ड एवं अमेरिका आदि देशों को चिकित्सा ज्ञान का पाठ पढ़ाया था ।
आयुर्वेद को श्रीलंका, थाइलैण्ड, मंगोलिया और तिब्बत में राष्ट्रीय चिकित्सा शास्त्र के रुप में मान्यता प्राप्त है।
चरक संहिता वसुश्रुत संहिता का अरबी में अनुवाद वहाँ के लोगों नें 7वीं शताब्दी में ही कर डाला था।
फरिस्ता नाम के मुस्लिम (इतिहास लेखक) लेखक नें लिखा है, ”कुछ 16 अन्य भारतीय चिकित्सकीय अन्वेषणों की जानकारी अरब को 8वीं शताब्दी में थी।”
पं. नेहरु जिन्होनें इतिहास में कई समस्या उत्पन्न करनें की भारी भूल की थी वही भी आयुर्वेद को नही नकार पाये और अपनी पुस्तक ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ में लिखा है – ” अरब का राजा हारुन-उल-राशिद जब बीमार पड़ा तो उसनें ‘मनक’ नाम के एक भारतीय चिकित्सक को अपने यहाँ बुलाया। जिसे बाद में अरब के शासक नें मनक को राष्ट्रीय चिकित्सालय का प्रमुख बनाया।
अरबलेखकों नें लिखा है कि मनक से समय बगदाद में ब्राह्मण छात्रों को बुलाया गया जिन्होनें अरब को चिकित्सा, गणित, ज्योतिषशास्त्र तथा दर्शन शास्त्र की शिक्षा दी।
बगदाद की पहचान ही हिन्दू चिकित्सा एवं दर्शन शास्त्र के रूप में विख्यात था ।
उस समय सम्पूर्ण अरब भारतीय चिकित्सा, गणित तथा दर्शन शास्त्र से सुपरिचित हुवा था । वह से यह विद्या क्रमशः पश्चिम देशों तक पहुची थी । इस तरह भारत पश्चिम देशों (युरोप) का गुरु बना था ।
यह सर्वविदित है कि सर्व प्रथम भारत से अरब और फिर अरब से यूरोप हमारी भारतीय विद्याओं से शिक्षित हुआ था । अतः समस्त ज्ञान विज्ञान की जननी हमारी मातृभूमि भारत भूमि ही रही है ।
यूरोपीय डॉ. राइल नें लिखा है- “हिप्पोक्रेटीज (जो पश्चिमी चिकित्सा का जनक माना जाता है) नें अपनें प्रयोगों में सभी मूल तत्वों के लिए भारतीय चिकित्सा का अनुसरण किया।”
डॉ. ए. एल. वॉशम भी लिखते है कि “अरस्तु भी भारतीय चिकित्सा का कायल था।”
भारत का प्राचीन इतिहास के चरक संहिता और सुश्रुत संहिता का गहराई से अध्ययन करनें वाले विदेशी वैज्ञानिक (जैसे- वाइस, स्टैन्जलर्स, रॉयल, हेजलर्स, व्हूलर्स आदि) का मानना है कि आयुर्वेद माडर्न चिकित्सा के लिए वरदान है, क्योंकि इसी से हमें कई नए शोधों की प्रेरणा मिलती है ।
कुछ भारतीय डॉक्टरों ने भी हमारे प्राचीन चिकित्सा पद्धति पर शोध कार्य किया है, जिनमें प्रमुख हैं- महाराजा ऑफ गोंदाल, गणनाथ सेन, जैमिनी भूषण राय, कैप्टन श्री निवास मूर्ति, डी. एन. बनर्जी, अगास्टे, के एस. भास्कर व आर. डब्ल्यू चोपड़ा आदि।
इन सभी देशी -विदेशी शोध कर्ताओं ने भारतीय चिकत्सा पद्धति के योगदान और महत्व को स्वीकार किया है । इस सबके बावजूद दूसरी और अनेको पश्चिमी शोधकर्ता भी हैं, जो दुराग्रह वश हमारी परंपरा और योगदान को नकारते हैं तथा अपने को ही श्रेष्ठ बतलाने के कुत्सित प्रयोग में लगे रहते है ।
हम भारतीओं को भारत का प्राचीन इतिहास का भरपूर ज्ञान प्राप्त करना चाहिए तथा इनपर शोध के जरिये इस और आगे बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए ।
जय भारत भूमि, जय जननी, तुम्हारी सदा जय हो !!!