अमरनाथ यात्रा का इतिहास के बारे में भारत में काफी तोड़ मरोड़ कर और उसमे झूठ मिलाकर लोगों के सामने परोसा गया है । आइये आज हम बाबा अमरनाथ यात्रा के वास्तविक इतिहास का विश्लेष्ण करें और उसे सत्य की कसौटी पर कस कर इसके असली सच को जानने का प्रयास करें ।
पैगंबर मोहम्मद का जन्म 22 April 571 AD को मक्का, सऊदी अरब में हुवा था। जब उनका जन्म भी नहीं हुआ था, तब से ही अमरनाथ गुफा में पूजा-अर्चना किये जाने का इतिहास मिलता है। इसलिए यह झूठ कि अमरनाथ गुफा की खोज किसी मुस्लिम गड़ेरिये ने की थी नितांत ही भ्रामक और सच को झुठलाने की एक कोशिश मात्र लगती है । यह अमरनाथ यात्रा का इतिहास को तोड़ मरोड़ कर परोशने की एक कोशिश मात्र है ।
बाबा बर्फानी के दर्शन के लिए बाबा अमरनाथ धाम की यात्रा हर साल शुरू होती है। अमरनाथ यात्रा शुरू होते ही सेक्युलरिज्म के ठेकेदार बाबा बर्फानी सम्बंधित गलत इतिहास की व्याख्या शुरू कर देते हैं । उनका कहना होता है कि अमरनाथ की गुफा को 1850 में एक मुसलिम बूटा मलिक ने खोजा था । पिछले साल तो पत्रकारिता का गोयनका अवार्ड घोषित करने वाले इंडियन एक्सप्रेस ने एक लेख लिखकर इस झूठ को जोर-शोर से प्रचारित किया था। जबकि इतिहास के पन्नों को उलटने वाले यह बखूबी जानते हैं कि जब इस्लाम इस पृथ्वी पर मौजूद भी नहीं था और जब इसके प्रणेता पैगम्बर का जन्म भी नहीं हुआ था, तब से अमरनाथ की गुफा में सनातन संस्कृति के अनुयायी बाबा बर्फानी की पूजा-अर्चना कर रहे हैं।
अमरनाथ यात्रा का इतिहास के बारे में कल्हण की ‘राजतरंगिणी’ और नीलमत पुराण में वर्णन बखूबी देखने को मिलता है। श्रीनगर से 141 किलोमीटर दूर 3888 मीटर की उंचाई पर स्थित अमरनाथ गुफा को तो भारतीय पुरातत्व विभाग ही 5 हजार वर्ष प्राचीन मानता है। यानी महाभारत काल से इस गुफा की मौजूदगी खुद भारतीय एजेंसियों भी मानती हैं। लेकिन यह भारत का सेक्यूलरिज्म है, जो तथ्यों और इतिहास से नहीं, मार्क्सवादी-नेहरूवादियों के ‘परसेप्शन’ से चलता है। वही ‘परसेप्शन’ हर बार जब भी बाबा अमरनाथ की यात्रा प्रारंभ होती है, बनाने का प्रयास शुरू हो जाता है ।
राजतरंगिणी में अमरनाथ
अमरनाथ की गुफा प्राकृतिक है न कि मानव निर्मित और यह बात सभी जानते और मानते हैं । अगर आधुनिक विज्ञान की मदद ली जाय तो पांच हजार वर्ष की पुरातत्व विभाग की अमरनाथ गुफा के बारे में गणना भी कम ही जान पड़ती है । क्योंकि हिमालय के पहाड़ लाखों वर्ष पुराने माने जाते हैं। यानी यह प्राकृतिक गुफा लाखों वर्ष पहले की है। कल्हण की ‘राजतरंगिणी’ में इसका साफ़ साफ़ उल्लेख मिलता है कि कश्मीर के राजा सामदीमत शैव थे और वह पहलगाम के वनों में स्थित बर्फ के शिवलिंग की पूजा-अर्चना करने जाते थे। उस भूभाग में ज्ञात हो कि अमरनाथ को छोड़कर बर्फ के शिवलिंग का अस्तित्व आपको कहीं और नहीं मिलेगा। यानी कि वामपंथी, जिस 1850 में अमरनाथ गुफा को खोजे जाने का कुतर्क गढ़ते हैं, इससे कई शताब्दी पूर्व कश्मीर के राजा खुद बाबा बर्फानी की पूजा किया करते थे।
नीलमत पुराण, और बृंगेश संहिता में भी बाबा अमरनाथ यात्रा के बारे में उल्लेख मिलता है। बृंगेश संहिता में स्पष्ट लिखा है कि अमरनाथ की गुफा की ओर जाते समय अनंतनया (अनंतनाग), माच भवन (मट्टन), गणेशबल (गणेशपुर), मामलेश्वर (मामल), चंदनवाड़ी, सुशरामनगर (शेषनाग), पंचतरंगिरी (पंचतरणी) और अमरावती में यात्री धार्मिक अनुष्ठान करते थे। इससे अधिक भला और किसी प्रमाण की क्या आवश्यकता है ?
छठी शताब्दी में लिखे गये नीलमत पुराण में भी अमरनाथ यात्रा का स्पष्ट उल्लेख आता है। नीलमत पुराण में कश्मीर के इतिहास, भूगोल, लोककथाओं, धार्मिक अनुष्ठानों की विस्तृत रूप में जानकारी उपलब्ध है। नीलमत पुराण में अमरेश्वरा के बारे में दिए गये वर्णन से यह साफ़ पता चलता है कि छठी शताब्दी में लोग अमरनाथ यात्रा किया करते थे।
नीलमत पुराण को पढने से और वहाँ अमरनाथ यात्रा का इतिहास के बारे में जानकारी प्राप्त करने पर यह पता चलता है कि तब तो इस्लामी पैगंबर मोहम्मद का जन्म भी नहीं हुआ था। तो फिर इस बात को कोई कैसे मान सकता है कि बूटा मलिक नामक एक मुसलमान गड़रिया ने अमरनाथ गुफा की खोज की थी ?
दरअसल में ब्रिटिशर्स, मार्क्सवादी और नेहरूवादी इतिहासकारों का पूरा जोर महज इस बात को साबित करने में रहा है कि कश्मीर में मुसलमान हिंदुओं से पुराने वाशिंदे हैं। इसलिए अमरनाथ की यात्रा को कुछ सौ साल पहले शुरु हुआ बताकर वहां मुस्लिम अलगाववाद के विजारोपन का तुच्छ प्रयास किया गया है।
अमरनाथ यात्रा का इतिहास में गुफा का उल्लेख
‘अमरनाथ यात्रा’ नामक पुस्तक जिसके लेखक अमित कुमार हैं उसके अनुसार, पुराण में अमरगंगा का उल्लेख मिलता है, जो सिंधु नदी की एक सहायक नदी थी। अमरनाथ गुफा जाने के लिए इस नदी के पास से होकर गुजरना पड़ता था। प्राचीन काल में ऐसी मान्यता था कि बाबा बर्फानी के दर्शन से पहले अमरगंगा नदी की तट पर मिलने वाली मिट्टी शरीर पर लगाने से ब्यक्ति के सारे पाप धुल जाते हैं। उस काल में शिव भक्त इस मिट्टी को अपने शरीर पर लगाते थे।
पुराणों में वर्णन आता है कि अमरनाथ गुफा की उंचाई 250 फीट और चौड़ाई 50 फीट थी। इसी गुफा में बर्फ से बना एक विशाल शिवलिंग था, जिसे बाहर से ही देखा जा सकता था। बर्नियर ट्रेवल्स में भी बर्नियर ने इस शिवलिंग का वर्णन किया है। विंसेट-ए-स्मिथ ने बर्नियर की पुस्तक के दूसरे संस्करण का संपादन करते हुए लिखा है कि अमरनाथ की गुफा आश्चर्यजनक है, जहां छत से पानी बूंद-बूंद टपकता रहता है और जमकर बर्फ के खंड का रूप ले लेता है। हिंदू इसी को शिव प्रतिमा के रूप में पूजते हैं।
‘राजतरंगिरी’ तृतीय खंड की पृष्ठ संख्या-409 पर डॉ. स्टेन ने लिखा है कि अमरनाथ गुफा में 7 से 8 फीट की चौड़ा और दो फीट लंबा शिवलिंग है। कल्हण की राजतरंगिणी द्वितीय में भी कश्मीर के शासक सामदीमत (34 ई.पू से 17 वीं ईस्वी) का बाबा बर्फानी के भक्त होने का उल्लेख है।
यही नहीं, जिस बूटा मलिक को 1850 में अमरनाथ गुफा का खोजकर्ता साबित किया जाता है, उससे करीब 400 साल पूर्व कश्मीर में बादशाह जैनुलबुद्दीन का शासन 1420-70 था। उसने भी अमरनाथ की यात्रा की थी। इतिहासकार जोनराज ने इसका उल्लेख किया है।
16 वीं शताब्दी में मुगल बादशाह अकबर के समय के इतिहासकार अबुल फजल ने अपनी पुस्तक ‘आईने-अकबरी’ में में भी अमरनाथ का जिक्र एक पवित्र हिंदू तीर्थस्थल के रूप में किया है। ‘आईने-अकबरी’ में लिखा है- गुफा में बर्फ का एक बुलबुला बनता है। यह थोड़ा-थोड़ा करके 15 दिन तक रोजाना बढ़ता है और यह दो गज से अधिक उंचा हो जाता है। चंद्रमा के घटने के साथ-साथ वह भी घटना शुरू हो जाता है और जब चांद लुप्त हो जाता है तो शिवलिंग भी विलुप्त हो जाता है।
इतने सारे प्रमाण की उपल्भता के बावजूत भी अमरनाथ यात्रा का इतिहास एक झूठ के रूप में प्रचारित किया जाता है कि अमरनाथ गुफा की खोज किसी मुसलिम गड़ेरिये ने की थी । हिन्दुओं को इस बारे में दिग्भ्रमित करने का इससे बड़ा सबूत भला और दूसरा क्या हो सकता है ?
वास्तव में कश्मीर घाटी पर विदेशी इस्लामी आक्रांता के हमले के बाद हिंदुओं को कश्मीर छोड़कर भागना पड़ा। इसके बारण 14 वीं शताब्दी के मध्य से करीब 300 साल तक यह यात्रा बाधित रही। यह यात्रा फिर से 1872 में आरंभ हुई। इसी अवसर का लाभ उठाकर कुछ इतिहासकारों ने बूटा मलिक को 1850 में अमरनाथ गुफा का खोजक साबित कर दिया और इसे लगभग मान्यता के रूप में स्थापित कर दिया।
अमरनाथ यात्रा का इतिहास की कड़ी में एक जनश्रुति और गढ़ी गई है । जिसमें बूटा मलिक को लेकर एक कहानी बुन दी गई कि उसे वहाँ भ्रमण के दौरान एक साधु मिला था । साधु ने बूटा मलिक को कोयले से भरा एक थैला दिया था । घर पहुंच कर बूटा ने जब थैला खोला तो उसमें उसे चमकता हुआ एक हीरा मिला । जब बूटा मलिक वह हीरा लौटाने या फिर खुश होकर उस साधू को धन्यवाद देने के लिए उस साधु के पास वापस लौटा तो वहां उसे कोई साधु नहीं मिला, बल्कि सामने अमरनाथ का गुफा था।
आज भी अमरनाथ में जो चढ़ावा चढ़ाया जाता है, इसी जनश्रुति के दम पर उसका एक भाग बूटा मलिक के परिवार को दिया जाता है। चढ़ावा देने से हमारा कोई विरोध नहीं है। लेकिन एक झूठ को दशक दर दशक जिस तरह से प्रस्थापित करने का प्रयास किया गया है, और जिसमे बहुत हद तक इन लोगों ने सफलता भी पाई है, यह सब जान कर और पढ़ कर बड़ा दुःख होता है ।
आज भी किसी हिंदू से अगर पूछिए तो वह नीलमत पुराण का नाम नहीं बताएगा, बल्कि वह एक मुसलिम गरेडि़ए ने अमरनाथ गुफा की खोज की, तुरंत इस फर्जी इतिहास को बताने लगेगा।
जागो हिन्दुओं जागो ! अपने अस्तित्व और अपने सही इतिहास को तर्क के कसौटी पर कस कर जानने का प्रयास करो !!
जयति जय, जय भारत, जय सनातन धर्म, जय श्री राम !!!