84 कोसी परिक्रमा यात्रा: अयोध्या का परंपरागत दिलचस्प इतिहास

0

84 कोसी परिक्रमा यात्रा विशुद्ध रूप से मान्यताओं पर आधारित अयोध्या में सदीओं से मनाई जा रही एक परंपरा है, जिसका निर्वाहन हिन्दू श्रद्धालु आज भी उसी भक्ति और विस्वास के साथ करते हैं जैसा कि किसी ज़माने में इसका चलन हुवा करता था

प्रस्तुत अंक में मै इस यात्रा का वर्णन इसकी पृष्ठभूमि, कथानक तथा मान्यताओं को ध्यान में रख कर करने की कोशिश कर रहा हूँ  

अयोध्या की 84 कोसी परिक्रमा यात्रा

गोरखपुर/बस्ती/अयोध्या में पिछली बार विहिप और यूपी सरकार के टकराव के बीच जोरों से चर्चा में आयी, 84 कोसी परिक्रमा अयोध्या  यात्रा के बारे में भारत का सामान्य जन समुदाय भी अब परिचित हो गया है । यह यात्रा बहुत पुराने रीति रिवाज और मान्यताओं पर आधारित बताई जाती है । बर्तमान काल में आम आदमी 84 कोसी परिक्रमाअयोध्या की यात्रा संतान प्राप्ति के लिए और साधू-संत-सन्यासी मोक्ष प्राप्ति के उद्येश्य से इसे करते हैं। परिक्रमा करने वालों में आज सबसे ज्यादा श्रद्धालु महाराष्ट्र व गुजरात से आते है।
 
84 kosi parikrama
 
ज्यादातर श्रद्धालु संतान की मनौति पूरी होने या संतान की चाह के साथ ही यहाँ  84 कोसी परिक्रमा  यात्रा  पूरी करने आते हैं। यहाँ मौजूद मखौड़ा या मख भूमि से संतान प्राप्ति के लिए परिक्रमा शुरू करने वालों के लिए शर्त है कि वे भोजन तैयार करें, वहां मौजूद लोगों में इसे बांटें, उन्हे खिलाये और तब फिर इसे स्वयं खुद खाएं। समर्पण से की गई परिक्रमा के बाद मान्यता के अनुशार संतान सुख की प्राप्ति होती है। यह कहना है 10 साल की उम्र से हर साल 84 कोसी परिक्रमा करने वाले महंत गयादास का। गयादास की उम्र अब लगभग 57 साल की बताई जाती है।
 

84 कोसी परिक्रमा यात्रा का कथानक

महंत गयादास के अनुशार बड़ी छावनी मठ, यह परिक्रमा सैकड़ों वर्षो से करता आ रहा है। चार पीढ़ी से परिक्रमा की उन्हे जानकारी है। मख भूमि, यज्ञ भूमि है। राजा दशरथ ने त्रेता में यहीं संतान के लिए यज्ञ किया था। जिसके बाद उनके चार पुत्र राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न हुए।
 
कथानक के अनुशार, अयोध्या के राजा महाराजा दशरथ सन्तान न होने से बहुत दुखी रहते थे। उनके दुख को देखकर गुरु वशिष्ठ ने उन्हें पुत्रेष्टि यज्ञ का आयोजन करने की सलाह दी और इसके लिए श्रृंग मुनि को निमन्त्रित किया गया। किम्वदंतिया हैं कि जिस वक़्त राजा दशरथ इस यज्ञ की तैयारी कर रहे थे उस वक़्त देवता स्वर्ग में विचार-विमर्श कर रहे थे। सभी देवताओं ने भगवान् विष्णु से प्रार्थना करते हुए निवेदन किया कि पृथ्वी पर राक्षसों का संहार करने के लिए राजा दशरथ के पुत्रों के रूप में भगवन जन्म लें और धर्म की स्थापना करें। भगवान् विष्णु ने इसके लिए हामी भर दी।

उधर पृथ्वी पर श्रृंगी मुनि ने राजा दशरथ से कहा कि आपको पुत्र प्राप्त हो इसके लिए अथर्ववेद के मन्त्रों से मैं पुत्रेष्टि यज्ञ करूंगा। वैदिक विधि से अनुष्ठान करने पर यह यज्ञ अवश्य सफल होगा। कहा जाता है कि यज्ञ के पूर्ण हो जाने पर अग्निकुंड से दिव्य खीर से भरा हुआ स्वर्ण पात्र हाथ में लिए हुवे स्वयं प्राजापत्य पुरुष प्रकट हुए और उन्होंने रजा दशरथ से कहा कि हे राजन यह स्वर्ग के देवताओं का प्रसाद दिव्य खीर है,  इसे आप अपनी रानियों को खिला दें। इस खीर को खाने से आपको चार प्रतापी और तेजस्वी पुत्रों की प्राप्ति होगी।
 
रजा दशरथ ने खीर का स्वर्ण पात्र स्वीकार किया और अयोध्या स्थित अपने महल पहुँचे। जिस जगह पर यज्ञ हुआ था उसे राजा दशरथ का मख कहा जाता है, जो आगे चलकर मखौड़ा धाम के नाम से प्रसिद्द हुआ। यहाँ राम-जानकी मंदिर बना हुआ है, जिसमे एक बड़ी और भव्य यज्ञशाला भी बनी हुयी है।
 
रजा दशरथ ने उस खीर का आधा भाग सबसे बड़ी महारानी कौशल्या को दे दिया। फिर बचे हुए आधे भाग का आधा भाग रानी सुमित्रा को बाकी कैकयी को दिया। कहते हैं कि राजा दशरथ की प्रिय कैकयी को सबसे अन्त में प्रसाद मिलने से गुस्सा आया और उन्होंने राजा दशरथ को भला बुरा कहा।
 
प्रचलित मान्यता है कि प्रसाद के इस अपमान को देखकर भगवान शंकर ने एक चील को वहाँ भेजा, जो कैकयी के हाथ से प्रसाद लेकर अंजन पर्वत पर तपस्या में लीन अंजनी देवी के हाथों वह प्रसाद सौंप आई। प्रसाद ग्रहण करने से अंजनी देवी भगवान शंकर जैसे प्रतापी पुत्र  हनुमान को जन्म दिया। उधर कैकेयी को निराश देखकर कौशल्या और सुमित्रा ने अपनी खीर में से एक भाग कैकयी को दे दिया जिससे तीनों रानियां गर्भवती हुईं।कौशल्या ने भगवान् राम को जन्म दिया कैकेयी ने भरत को और कहा जाता है कि सुमित्रा द्वारा खीर के दो भाग खाने के कारण ही उन्हें जुड़वाँ पुत्र लक्ष्मण और शत्रुघ्न पैदा हुए।
 
प्रचलित मान्यताओं के अनुसार भगवान राम का साम्राज्य 84 कोस के क्षेत्रफल में फैला हुवा था। राजा राम के राज्य का नाम कोशलपुर था और अयोध्या उसकी राजधानी हुआ करती थी। कोशलपुर राज्य के क्षेत्रफल के चलते ही इस परिक्रमा का नाम 84 कोसी परिक्रमा  पड़ा। ये परिक्रमा चैत में सीतापुर जिले के नेमिसार से शुरू होकर गोण्डा, बहराइच, बस्ती, बाराबंकी, अम्बेडकर नगर होते हुए रामनवमी के दिन अयोध्या में समाप्त होती है।
 
मान्यताओं के अनुसार इस परिक्रमा के दौरान श्रद्धालु राजा राम के राज्य की 84 कोसी परिक्रमा करने से मोक्ष प्राप्त करते हैं।
 
Leave A Reply

Your email address will not be published.

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.